12-11-79  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बंगाल-बिहार, तामिलनाडू तथा विदेशी भाई बहनों के सम्मुख उच्चारे हुए महावाक्य

‘‘आज चारों ओर के लवली बच्चों के स्नेह के साज़ अमृतवेले से बाप-दादा ने सुने। स्नेह का रिटर्न, बाप-दादा दूर देश वासी से, अव्यक्त वतन वासी से, बच्चों के समान साकार वतन निवासी आकर बने। स्नेह का स्वरूप है समान बनना। तो बाप-दादा समान स्वरूप में स्नेह का रिटर्न (Return) दे रहे हैं, अब बच्चों को क्या रिटर्न करना है? जब बाप बच्चों के समान बन सकते हैं तो बच्चों को भी समान बनना है। यही स्नेह का रिटर्न है।’’

2. अब इस वर्ष में कौन-सी विशेष समानता दिखावेंगे? समय की रफ़्तार तीव्र गति से चल रही है। बाप-दादा की सर्व सृष्टि की आत्मायें बाप-दादा और आप सर्व परम पूज्य आत्माओं के प्रति संकल्प द्वारा भिन्न-भिन्न रूप से एक अर्ज़ी रख रहे हैं। उस अर्ज़ी को पूर्ण करने वाले, आत्माओं की अर्ज़ी की आवाज़ सुनते हो?

अमृतवेले का महत्व

3. अमृतवेले चारों ओर के तमोगुणी वातावरण या वाइब्रेशन के वायुमण्डल में प्राय: लोप स्थिति का समय होता है अर्थात् तमोगुण का प्रभाव दबा हुआ होता है। ऐसे समय पर सहज ही पुकार और उपकार होता। पुकार सुनना भी सहज है, उपकार करना भी सहज है। वरदान लेना भी सहज है और दान देना भी सहज है क्योंकि वातावरण वृत्ति को बदलने वाला होता है। ऐसे समय पर, आप सर्व वरदानी आत्माओं की स्वयं की स्थिति भी, बाप की विशेष वरदानों की छत्रछाया के कारण, बाप के समान सम्पन्न और दातापन की होती है। ब्रह्मलोक के निवासी बाप विशेष रूप से ज्ञान-सूर्य की लाईट और माइट की किरणें विशेष बच्चों को वरदान रूप में देते हैं। इसलिए इस समय को ‘ब्रह्म मुहूर्त्त’ का समय कहते हैं।

4. क्या इस समय पर आप स्वयं का सारे दिन की श्रेष्ठ स्थिति वा कर्म का मुहूर्त्त निकालते हो? जैसा मुहूर्त्त निकालना चाहो वह निकाल सकते हो। साथ-साथ अव्यक्त वतन-वासी ब्रह्मा बाप भाग्य-विधाता के रूप में इस अमृतवेले भाग्य अर्थात् अमृत बाँटते हैं। जितना भाग्य रूपी अमृत ब्रह्मा बाप द्वारा लेना चाहो वह ले सकते हो। लेकिन बुद्धि रूपी कलश अमृत धारण करने के योग्य हो। किसी भी प्रकार का विघ्न या रूकावट न हो। तो ऐसे समय पर लेना और देना साथ-साथ चलना है। वरदानी और महादानी दोनों पार्ट साथ-साथ चलना है। ऐसी स्थिति में स्थित होने वाली उपकारी आत्माओं को, आत्माओं की पुकार भी स्पष्ट सुनाई देगी। इतनी स्पष्ट सुनाई देगी जैसे कानों में कोई बात कह रहा हो।

पुकार पर उपकार कैसे?

5. तो वर्तमान समय सर्व की एक ही पुकार कौन-सी है, वह जानते हो? धार्मिक नेताओं, राजनेताओं और सर्वश्रेष्ठ साइन्स वाले और साथ-साथ आम जनता की एक ही पुकार है कि अब जल्दी में कुछ बदलना चाहिए। सर्व क्षेत्र की आत्मायें अब अपने को फेल अनुभव करने लगी हैं। अब कोई सुप्रीम पावर चाहिए। इस चाहना का दीपक वा इस आवश्यकता को महसूस करने के संकल्प का दीपक जग चुका है। अब उसको और तेज़ करने के लिए आप सर्व आत्माओं के संकल्प का घृत चाहिए जिससे सर्व की पुकार के ऊपर उपकार कर सको। (आज दो-चार बार बीच-बीच में बिजली जाती रहती थी) देखो यह लाईट भी शिक्षा दे रही है। जैसे लाइट एक सेकेण्ड में आती और चली जाती है, ऐसे ही आप भी एक सेकेण्ड में पुकार वालों के पास उपकारी बन पहुँच जाओ। ऐसा अभ्यास आने और जाने का हो। अभी-अभी पुकार सुनी और अभी- अभी पहुँचे। अब सर्व की पुकार मेहनत से छूट सहज प्राप्ति करने की है। साइन्स वाले भी बहुत मेहनत कर थक गए हैं। धार्मिक आत्मायें भी साधना करके थक गई हैं। राजनैतिक लोग अनेक दल-बदलुओं के चक्र से थक गये हैं। और आम जनता समस्याओं से थक गई है। अब सबकी थकावट उतारने वाले कौन?

द्रोपदी के पाँव दबाने का अर्थ

6. जैसे कल्प पहले के यादगार शास्त्रों में वर्णन हैं कि स्वयं बाप ने द्रोपदी के पाँव दबाये, तो बाप समान उपकारी बच्चे बन सर्व आत्माओं की थकावट मिटाओ। अब बुद्धि रूपी पाँव थक गये हैं, बुद्धि में स्मृति के स्विच को दबाओ। यही बुद्धि रूपी पाँव दबाना है।

7. अब सुना इस वर्ष क्या करना है? एक सेकेण्ड में झलक और फरिश्तेपन की फ़लक दिखाओ। यही बाप के स्नेह का रिटर्न है। अन्य आत्माओं की समस्याओं का समाधान स्वरूप बनने से स्वयं की समस्यायें स्वत: ही समाप्त हो जावेंगी। इसलिए अब समाधान स्वरूप बनो। एक वर्ष में ऐसा स्वरूप परिवर्तन किया है ना? विश्व-परिवर्तक स्वयं के परिवर्तक बन चुके हैं ना? वा अभी भी बनना है? बनना है वा अब विश्व-सेवा करनी है? अब सेवा करने का समय है, लेने के साथ देने का समय है। एक ही संकल्प में लेना है और देना है। ऐसी फास्ट स्पीड चाहिए।

अंतिम सीज़न और उनकी तैयारी

इन्तज़ार तो किया लेकिन इन्तज़ाम भी किया? इन्तज़ार किया बाप के आने का और बाप आकर क्या देखेंगे? इन्तज़ाम। कोई ऐसा इन्तज़ाम किया? जैसे यहाँ स्थूल सीज़न का इन्तज़ाम करते हो, सेवाधारी तैयार करते हो, सामग्री तैयार करते हो कि किसी को भी कोई तकलीफ न हो, समय व्यर्थ न हो, कहीं क्यू में खड़ा न रहना पड़े, इसके लिए सब साधन अपनाते हो। यह तो है ब्राह्मणों की मधुबन की सीज़न। लेकिन अब अन्तिम सीज़न कौन-सी आने वाली है? सर्व आत्माओं की गति-सद्गति करने की सीज़न आनी वाली है। उसके लिए साधन अपनाये हैं? तड़फती हुई आत्माओं को क्यू में खड़ा करने का कष्ट नहीं देना है। आते जाएं और लेते जाएं। तड़फती आत्माएं एक सेकेण्ड भी रूक नहीं सकेंगी। हाहाकार कर देंगी। ऐसे सीज़न की तैयारी की है। महारथियों को क्यू में खड़ा करने नहीं देना चाहिए और लूले-लंगड़े, ऐसी आत्माओं को क्यू में क्या खड़ा करेंगे! लण्डन में भी क्यू लगावेंगे क्या? फारेनर्स क्यू में खड़े होंगे? फिर क्या करेंगे? एवररेडी बनना पड़ेगा। भारत वाले या फारेन वाले एवररेडी बने बिना मास्टर गति सद्गति दाता नहीं बन सकते। ज्यादा पुरुषार्थी जीवन में रहने से भी ऊपर अब दातापन की स्थिति में रहो। हर सेकेण्ड चेक करो कि दाता के बच्चे दाता बने हैं? हर संकल्प और हर सेकण्ड में दाता बन करके चलो। तो आप सबका भी सेकेण्ड में हाईजम्प हो जावेगा। देने में बीज़ी होंगे तो माया भी बिज़ी देख वार करने की बजाए नमस्कार करेगी। समझा? अब क्या करना है? चारों ओर के बच्चों को जो साकार रूप से भले दूर हैं लेकिन स्नेह से समीप हैं, ऐसे स्नेही और समीप बच्चों को बाप-दादा समान भव के वरदान से याद का रिटर्न दे रहे हैं। (बिज़ली बन्द) चंचल में भी अचल। यह तो कुछ भी नहीं हैं, अन्तिम सीज़न के समय किसी भी प्रकार के साधन नहीं मिलेंगे। अभी तो बहुत साधन हैं। यह भी प्रैक्टिस करो कि वातावरण में हलचल हो लेकिन स्मृति और वृत्ति अचल हो। ज़रा भी हलचल न हो कि यह क्या हुआ! यह प्रैक्टिस हो रही है? बाप-दादा को भी ड्रामा अनुसार पुरानी दुनिया की कोई तो सीन सीनरी दिखावेंगे ना। अच्छा –

ऐसे सदा उपकारी, हर सेकेण्ड मास्टर गति-सद्गति दाता, शक्तियों के भण्डार से भरपूर, अखुट खज़ाने के दाता, सर्व आत्माओं की थकावट मिटाने वाले अथक सेवाधारी, ऐसे बाप समान, समीप बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

विदेशी बच्चों के साथ - सभी सदा एक-रस स्थिति में स्थित रहते हुए, औरों का भी एक बाप से सम्बन्ध जुड़ाने में, सर्व प्राप्ति कराने में तत्पर रहते हो? एक बाप दूसरा न कोई, ऐसी स्थिति निरन्तर और नेचुरल बनी है कि बनानी पड़ती है? अभ्यास करना पड़ता है या स्वत: ही यह स्टेज रहती है? कहाँ तक पहुँचे हो? जब परिचय मिल गया अपना भी और बाप का भी फिर बार-बार अटेन्शन देने की आवश्यकता है?

माया-एक खिलौना और शिकार

माया तंग करती है क्या? अब नमस्कार करने का समय है न कि वार करने का। क्या अभी तक माया का वार होता है? समय प्रति समय जैसे स्टेज आगे बढ़ती जा रही है, अब माया का वार नहीं होना चाहिए। अगर माया आये भी, तो उसे खेल समझकर देखो। ऐसे अनुभव हो जैसे साक्षी होकर हद का ड्रामा देखते हैं। ऐसे इस माया के खेल का ड्रामा देखो तो बहुत मज़ा आयेगा, फिर घबरायेंगे नहीं। तो ऐसी स्टेज अभी होनी चाहिए। कैसी भी विकराल रूप से माया आये लेकिन आप उसको खिलौना समझेंगे तो वह खेल हो जायेगा। जैसे शिकारी शिकार करता है, उसमें भी वार होता है, लेकिन शिकार समझने के कारण वह घबराता नहीं है। खुश होता है। आप सब भी माया के शिकारी हो। शिकारी कभी डरते नहीं। घबराते नहीं, खुश होते हैं। इस बार मधुबन से यह दृढ़ संकल्प करके जाओ कि सदा खिलाड़ी बन करके खेल देखेंगे। ताकि विदेश से माया वार करने की बजाए नमस्कार करना शुरू कर दे। ऐसे विदेशी संकल्प करते हैं? अब सभी तरफ से माया का वार समाप्त।

टीचर्स के साथ –

टीचर्स अर्थात् शिक्षक। बाप भी शिक्षक के रूप से पार्ट बजाते हैं। तो शिक्षक बाप समान मास्टर वर्ल्ड शिक्षक हुए। जैसे बाप विश्व का शिक्षक है, सिर्फ भारत का नहीं है या सिर्फ फॉरेन का नहीं, पूरे विश्व का है। ऐसे मास्टर शिक्षक अर्थात् बेहद के शिक्षक। तो जो बेहद के शिक्षक हैं उन्हों का नशा क्या होगा? बेहद का नशा, बेहद की खुशी, बेहद की प्राप्ति, बेहद की प्रालब्ध। तो ऐसी टीचर्स हो ना? क्योंकि जैसे बाप का टाइटिल मिला है तो टाइटिल के प्रमाण कर्तव्य और गुण भी वही होंगे ना। तो बेहद में रहती हो? स्थिति भी बेहद की। देहाभिमान-हद की स्थिति हुई, देहीभिमानी बनना यह है बेहद की स्थिति। देहाभिमान में आयेंगे तो अनेक प्रकार की हदें हैं - मैं फीमेल हूँ, यह भी हद है ना। इसी प्रकार देह में आने से अनेक कर्म के बन्धनों में हद में आना पड़ता। जब देही बन जाते हो तो ये सब बन्धन खत्म हो जाते हैं। तो स्थिति भी बेहद की अर्थात् देहीभिमानी रहे।

टीचर्स अर्थात् बेहद में रहने वाली, टीचर्स अर्थात् बन्धनों से मुक्त रहने वाली। जैसे आप लोग भी कहते हो बन्धन मुक्त ही जीवनमुक्त....तो जो बेहद की स्थिति में रहने वाले होंगे वह बन्धन-मुक्त, जीवनमुक्त होंगे। भविष्य का जीवनमुक्ति नहीं, अभी की जीवनमुक्ति। इस संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में रहते हुए वायुमण्डल, वायब्रेशन, तमोगुणी वृत्तियाँ, माया के वार, इन सबसे मुक्त। इसको कहा जाता है जीवनमुक्त। तो टीचर अर्थात् अभी के जीवनमुक्त। तो ऐसे हो? टीचर भी परिभाषा ही यह है। टीचर का टाइटिल कोई कम नहीं है।

टीचर बनना अर्थात् बाप समान बनना। टीचर बनना अर्थात् बाप की गद्दी पर बैठना। तो जो जिसकी गद्दी पर, कुर्सी पर, सीट पर बैठेंगे, तो सीट का कर्त्तव्य वा सीट के क्वालिफिकेशन प्रेक्टिकल में लाने पड़ेंगे। तो टीचर्स का कितना महत्व है। नाम के साथ काम भी है। तो ऐसे हो? क्या समझती हो? टीचर्स को देखकर बाप को विशेष खुशी होती है क्योंकि टीचर्स हैं बाप की फ्रेंडस। जब दो फ्रेंडस आपस में मिलते हैं तो कितने खुश होते हैं तो टीचर्स हैं सबसे समीप फ्रेंडस। तो खुशी होगी ना? फ्रेंड्स बनते ही तब हैं जब समान होते हैं। तो समान हो ना? जो इस समय समान बनते हैं वही भविष्य में भी ब्रह्मा बाप के साथ-साथ सर्व जीवन के विशेष पार्ट में भी साथ रहते हैं। जैसे फ्रेंड्स हर कार्य में सदा साथ-साथ रहते हैं ना। तो जो ऐसे समान टीचर बनते हैं वह शुरू से साथ पढ़ेंगे, साथ खेलेंगे और फिर साथ में ही राज्य करेंगे। तो ऐसे समान टीचर्स हो ना? वायदा भी है साथ जियेंगे, साथ मरेंगे...और साथ ही राज्य में आयेंगे। इतने तक वायदा है। तो ऐसे ही समान टीचर्स हो?

समान और स्वभाव

ऐसी समान टीचर्स की वर्तमान निशानी क्या होगी? सदा समान आत्मा इस समय स्वमान में होगी। समानता का स्वमान प्रेक्टिकल में दिखाई देगा। जैसे बाप सदा स्वमान में स्थित है इसी प्रकार समान आत्मायें भी स्वमान में होंगी। नीचे नहीं आयेंगी। हर कदम स्वमान का होगा। तो स्वमान को देखने से ही सबके मुख से निकलेगा कि यह तो स्वमानधारी बाप-समान है। स्वमान ही उनका सिंहासन होगा। भविष्य सिंहासन के पहले स्वमान के सिंहासन पर सदा कायम होंगी। सिंहासन से नीचे नहीं आयेंगी। ऐसी हो? बाप तो हरेक को इसी श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं। अच्छा - सभी सन्तुष्ट हो? जहाँ भी हो वहाँ संतुष्ट हो? सदा सन्तुष्ट रहना, यह भी टीचर की विशेष क्वालिफिकेशन है। टीचर का मुख्य गुण ही है - सदा सन्तुष्ट रहना और सदा सन्तुष्ट करना। अगर कोई कहे कि मैं तो सन्तुष्ट हूँ, दूसरों को सन्तुष्ट नहीं कर सकती तो यह भी टीचर की योग्यता के विरूद्ध है। टीचर्स का कर्त्तव्य है - सन्तुष्ट करना। अगर स्वयं नहीं कर सकती तो किसी के भी सहयोग से करना ज़रूर है।

टीचर को तो सदा विघ्न-विनाशक बन करके अनेकों के विघ्न-विनाशक बनने का आधार बनने के निमित्त बनाया है। कोई समस्या ले करके आये और समाधान स्वरूप बन करके जाएं। ऐसी टीचर्स हो ना?

प्रश्न :- आप ब्राह्मण आत्मायें विशेष आत्माओं की लिस्ट में हो? इस लिस्ट में कौन आते हैं?

उत्तर :- विशेष आत्माओं की लिस्ट में वही आते जिनमें कोई-न-कोई विशेषता है। कोई भी ब्राह्मण बच्चा ऐसा नहीं जिसमें कोई विशेषता न हो सबसे पहली विशेषता तो यही है जो बाप को जान लिया, बाप को पा लिया। कोटो में कोउ और कोउ में भी कोई ने जाना। तो बाप भी उसी नज़र से देखते हैं कि यह विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्माओं को सदा खुशी के झूले में झूलना चाहिए। लाडले बच्चे कभी भी मिट्टी में पाँव नहीं रखते, आप लाडले बच्चे सदा बाप की याद के गोदी में रहो। सब-कुछ करते भी बाप की गोद में रहो, नीचे न आओ।